New York Indian Film Festival 2011 Facebook
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www.bbc.co.uk
न्यूयॉर्क में भारतीय फ़िल्म महोत्सव
शनिवार, 7 मई
 
10 मिलिलीटर लव

हास्य फ़िल्म 10 मिलिलीटर लव भी महोत्सव शामिल है.

न्यूयॉर्क में आजकल भारतीय मूल की फ़िल्मों का एक महोत्सव चल रहा है जिसमें भारतीय मूल के साथ साथ विदेशी फ़िल्मकारों की फ़िल्में भी दिखाई जा रही हैं.

न्यूयॉर्क इंडियन फ़िल्म फ़ेस्टिवल नाम के इस फ़िल्मोत्सव में कुछ तो मशहूर भारतीय कलाकारों की फ़िल्में हैं तो कई उभरते हुए कलाकार और फ़िल्मकारों की फ़िल्में हैं.

इनमें फ़ीचर फ़िल्मों के साथ-साथ वृत्तचित्र और शॉट फ़िल्में भी शामिल हैं.

भारतीय मूल के अमरीकियों की एक कला संस्था इंडो अमेरिकन आर्टस काउंसिल इस वार्षिक फ़िल्मोत्सव का पिछले 11 सालों से आयोजन करती आ रही है.

फ़िल्म की कहानी के मुताबिक़ मेरी कोशिश यह थी कि श्रृषि कपूर और नीतू सिंह को उनके ग्लैमर वाली इमेज से अलग एक साधारण दंपत्ति की हैसियत से फ़िल्म में दर्शाया जाए. मुझे लगता है कि मैं काफ़ी हद तक कामयाब हुआ हूं क्यूंकि दोंनो कलाकार बहुत ही मंझे हुए हैं.

हबीब फ़ैसल, फ़िल्म दो दुनी चार के निर्देशक

संस्था की निदेशक अरूणा शिवदसानी कहती हैं, “अब एक दशक से अधिक समय से इस वार्षिक महोत्सव के ज़रिए हमने बहुत से उभरते हुए कलाकारों और फ़िल्मकारों को अपना हुनर दिखाने के लिए एक मंच प्रदान किया है. और उन्हे अपना काम अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने में मदद की है. हमारी कोशिश होती है कि भारतीय मूल के उभरते हुए फ़िल्मकारों का प्रोत्साहन करें और उनकी कला को निखारने में मदद करें. ”

जो फ़िल्म इस महोत्सव में सबसे अधिक चर्चा में है वह है श्रृषि कपूर और नीतू सिंह की – दो दूनी चार- जिसका निर्देशन और लेखन किया है हबीब फ़ैसल ने.

श्रृषि-नीतू एक साथ

बतौर निर्देशक हबीब फ़ैसल की यह पहली फ़िल्म है लेकिन वह कहते हैं कि उन्होंने अपनी पहली ही फ़िल्म में कुछ अलग तरह से कलाकारों को पेश करने की कोशिश की है.

इस फ़िल्म में अभिनेता श्रृषि कपूर और उनकी पत्नी नीतू सिंह क़रीब 30 साल के बाद एक साथ किसी फ़िल्म में नज़र आ रहे हैं. असल जीवन के दंपत्ति फ़िल्म में एक साधारण से दंपंत्ति के रूप में नज़र आते हैं.

श्रृषि कपूर और नीतू सिंह

तीस साल के बाद फ़िल्मी पर्दे पर एक साथ श्रृषि कपूर और नीतू सिंह

हबीब फ़ैसल कहते हैं, “फ़िल्म की कहानी के मुताबिक़ मेरी कोशिश यह थी कि श्रृषि कपूर और नीतू सिंह को उनके ग्लैमर वाली इमेज से अलग एक साधारण दंपत्ति की हैसियत से फ़िल्म में दर्शाया जाए. मुझे लगता है कि मैं काफ़ी हद तक कामयाब हुआ हूं क्यूंकि दोंनो कलाकार बहुत ही मंझे हुए हैं.”

वॉल्ट डिज़नी के बैनर तले बनाई गई इस फ़िल्म की कहानी भारतीय समाज के विभिन्न क्षेत्रों में फैले भ्रष्टाचार के कारण लोगों के जीवन पर उसके असर को दर्शाया गया है. लेकिन फ़ैसल कहते हैं कि यह बातें तो बड़ी-बड़ी लगती हैं लेकिन यह एक हास्य फ़िल्म है.

हबीब फ़ैसल ने इससे पहले बैंड बाजा बारात फ़िल्म का लेखन किया था.

इसके अलावा जो फ़िल्में चर्चा में हैं उनमें रितुपारणो घोष की नौका डूबी, रुबैय्यत हुसैन की मेहेरजान जिसमें जया भादुरी ने काम किया है, अपर्णा सेन की इट्स मृणालिनी जिसमें कोंकणा सेन और अपर्णा सेन ने मुख्य भूमिका निभाई हैं.

एक अन्य हास्य फ़िल्म है 10 मिलिलीटर लव जिसका निर्देशन किया है शरत कटारिया ने और रजत कपूर ने मुख्य भूमिका निभाई है.

मैंने कई संस्कृतियों और धर्मों के लोगों को मिलाकर 90 मिनट में एक हास्य से भरी फ़िल्म बनाई है. अब आजकल भारत में कॉमेडी का दौर चल रहा है और मैं अपनी पहली फ़िल्म सीरियस नहीं बनाना चाहता था.

शरत कटारिया, हास्य फ़िल्म 10 मिलिलीटर लव के निर्देशक

पहली बार फ़ीचर फ़िल्म का निर्देशन करने वाले निर्देशक शरत कटारिया कहते हैं, “मैंने कई संस्कृतियों और धर्मों के लोगों को मिलाकर 90 मिनट में एक हास्य से भरी फ़िल्म बनाई है. अब आजकल भारत में कॉमेडी का दौर चल रहा है और मैं अपनी पहली फ़िल्म सीरियस नहीं बनाना चाहता था.”

एक फ़िल्म है भोपाल गैस त्रासदी पर – भोपाली- जिसका निर्देशन किया है मैक्स कार्लन ने.

सरोगेसी पर फ़िल्म

रेबेका हायमोविट्ज़ और वैशाली सिन्हा के सह-निर्देशन में बनाई गई मेड इन इंडिया नामक फ़िल्म भारत में सरोगेसी या स्थानापन्न मातृत्व के मुद्दे पर प्रकाश डालती है. यह फ़िल्म अमरीका के कई निसंतान दंपत्तियों के भारत जाकर स्थानापन्न मातृत्व के ज़रिए संतान हासिल करने के मुद्दे को उजागर करती है.

वैशाली सिन्हा कहती हैं, “सबसे मुश्किल काम था एक स्थानापन्न मातृत्व करने वाली महिला को कैमरे के सामने बात करने के लिए तैयार करना. उसी के इर्द गिर्द यह फ़िल्म घूमती है. हम चाहते हैं कि इस बढ़ते हुए उद्योग में महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए उचित क़ानून लागू हों.”

सबसे मुश्किल काम था एक स्थानापन्न मातृत्व करने वाली महिला को कैमरे के सामने बात करने के लिए तैयार करना. उसी के इर्द गिर्द यह फ़िल्म घूमती है. हम चाहते हैं कि इस बढ़ते हुए उद्योग में महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए उचित क़ानून लागू हों.

वैशाली सिन्हा, मेड इन इंडिया की सह-निर्देशक

इसी तरह एक फ़िल्म है जो एक सीरीज़ का हिस्सा है जिसमें विश्व के विभिन्न इलाको़ के खानों के बारे में बताया जाता है.

विकास खन्ना ने -कर्मा टू निर्वाण-का निर्देशन किया है. वह कहते हैं,“जब हमने फ़िल्म बनानी शुरू की तो सिर्फ़ खाने के बारे में ही थी, लेकिन फिर हमने उसी के ज़रिए अलग अलग धर्मों के बारे में बताना भी शुरू किया है.अब हम विश्व के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग संस्कृतियों और धर्मों के खाने के रिवाज पर फ़िल्में बना रहे हैं.”

चार दिनों तक चलने वाले इस फ़िल्मोत्सव में मृणालिनि की – नोट ऑफ़ साइलेंस, अरूण चक्रवर्ती की – यू डोंट बिलांग, चेतन देसाई की लेजेंड ऑफ़ राम, आमिर बशीर की – हरूद, और सुधीर मिश्रा की – यह साली ज़िंदगी भी शामिल हैं.

 
Source: http://www.bbc.co.uk/hindi/news/2011/05/110507_newyork_filmfestival_ia.shtml

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